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विष योग

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कैसे जानकारी करें

ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार किसी भी जातक की जन्मकुंडली में यदि शनि एवं चन्द्र एक साथ बैठे हों तो 'विषयोग' निर्मित होता है। विषयोग मनुष्य को उसके पूर्व के जन्मों में स्त्री/पुरुष के प्रति किये गए क्रूर-कठोर आचरण की ओर संकेत करता है। इस योग का प्रभाव जातक के जीवन में शत-प्रतिशत घटित होता है, इसीलिए इसे ज्योतिषशास्त्र के सर्वाधिक प्रभावशाली योगों में गिना जाता है।जो जन्मकाल से आरंभ होकर मृत्यु पर्यंत अपने अशुभ प्रभाव देता रहता है। इस योग के समय जन्म लेने वाला जातक यदि श्वान को भी रोटी खिलाए तो देर-सवेर वह भी उसे काट खायेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि इस विष योग वाली कुंडली का जातक अपने ही मित्रों सम्बन्धियों के द्वारा ठगा जाता है। ये जिस किसी भी व्यक्ति की मदद करते हैं उनसे अपयश मिलना तय रहता है। कुंडली में जिस भाव में भी 'विषयोग' बनता है, प्राणी को उस भाव से ही सम्बंधित कष्ट मिलते हैं अथवा उस भाव से सम्बंधित कारकत्व पदार्थों का अभाव रहता है। इसका सूक्ष्म विवेचन अष्टक वर्ग के 'द्रेष्काण' में गहनता से किया जाता है जो जातक द्वारा पूर्व के जन्मों में किसी स्त्री को दिये गये कष्ट की ओर संकेत करता है। पुनः वही स्त्री प्रतिशोध लेने के लिए मनुष्य योनि में विषयोग वाले प्राणी की माँ, पत्नी, पुत्री, बहन आदि के रूप में आती है। माँ की कुंडली में शुभत्व प्रबल होने पर वह पुत्र की गाढ़ी कमाई का धन स्वास्थ्य, विलासिता एवं अन्य संतानों पर व्यय कराती है और दुख, दारिद्र्य तथा धन का नाश कराते हुए दीर्घकाल तक जीवित रहती है। यहाँ तक कि मृत्यु के समय भी वह अन्य संतानों की देखभाल करने का वचन भी ले लेती है। पुत्र की जन्मकुंडली में ये ग्रह प्रबल हो तो जन्म के बाद माँ की मृत्यु होने का भय रहता है।शनि के चंद्रमा से अधिक अंश या अगली राशि में होने पर जातक अपयश का भागी होता है। यही विषयोग यदि महिलाओं की जन्म कुंडली में हो तो उन्हें पुरुष पिता, भाई, पति, पुत्र आदि के रूप में आर्थिक मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते रहते हैं। इस योग से प्रभावित महिला भी अति संघर्ष का सामना करते हुए जीवन का निर्वहन करती है।

जब चन्द्रमा और शनि किसी भाव में युति संबंध बनाते हों तो विष योग का निर्माण होता है।
जब चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में बैठ कर अपने-अपने स्थान से एक-दूसरे को देख रहे हो। जब चंद्र पर शनि की ३, ७ एवं १०वीं दृष्टि पड़ रही हो। जब कर्क राषि में पुष्य नक्षत्र में शनि हो और चन्द्रमा मकर राषि में श्रवण नक्षत्र का हो और दोनों का स्थान परिवर्तन योग हो या शनि और चन्द्र विपरीत स्थिति में हो और दोनों की एक दूसरे पर दृष्टि हो तब विष योग बनता है। सूर्य अष्टम भाव में, चन्द्र षष्टम भाव में और शनि १२ वे भाव में होने पर भी विष योग का निर्माण होता है। जन्म कुण्डली में आठवे स्थान पर राहू हो और शनि मेष, कर्क, सिंह, या वृष्चिक लग्न में हो तो विष योग का निर्माण होता है।


जीवन में प्रभाव

जन्म कुंडली में यहाँ शुभ योगों का निर्माण होता है तो वहीं कुछ अषुभ योगों का भी निर्माण होता है जो समय-समय पर जातक को शुभ एवं अषुभ फल प्रदान करते हैं। शनि और चंद्र की युति से विष योग नामक अशुभ योग निर्माण होता है। शनि और चंद्र का संयोग अगर जातक की कुंडली में हो तो ऐसे में उनकी आपस में दशा-अंतर्दशा के दौरान विकट फल मिलने की संभावना होती है। ज्योतिष में शनि ग्रह को जहर का कारक और चन्द्र को दूध का कारक मन जाता है। जब चंद्र के दूध में शनि का जहर मिल जाता है तो वह जहरीला होने के कारन सफेद से नीला (शनि, राहु) हो जाता है। जिससे जातक में चंद्र की चंचलता समाप्त हो जाती है और शनि की उदासी हावी होने से मानसिक रोग लग जाता है। यह योग जातक की माता को भी स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्या प्रदान करता है। आइए जानते हैं कि विष योग कुंडली में कैसे निर्मित होता है :

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