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त्रिपिंडी श्राद्ध

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त्रिपिंडी श्राद्ध क्या हैं

पितरों की प्रसन्ता‍ के लिये धर्म के नियमानुसार हविष्ययुक्त पिंड प्रदान आदि कर्म करना ही श्राध्द कहलाता है। श्राध्द करने से पितरों कों संतुष्टि मिलती है और वे सदा प्रसन्न रहते हैं और वे श्राध्द कर्ता को दीर्घायू प्रसिध्दि, तेज स्त्री पशु एवं निरागता प्रदान करते है। और्ध्वदैविक सांवत्सारिक, एकोदिष्ट पार्वण तथा भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में किये जाने वाले श्राध्द कुल पांच प्रकार के हैं। कोई विशेष इच्छा मन में रखकर किया जाने वाला कार्य काम्य कहलाता हैं।
नारायण बलि, नागबलि एवं त्रिपिंडी ये तीन श्राध्द कहलाते है। पितरो को प्रसन्न करने के लिए किए जाने वाले श्राध्द को शास्त्र में पितृयज्ञ से संम्बोदधित किया गया है। पितर ही अपने कुल की रक्षा करते हैं, इसलिये श्राध्द करके उन्हें संतुष्ट रखें ऐसा वचन शास्त्रों का है। जिस घर परिवार के पितर खुश रहते हैं उसमें कभी भी किसी प्रकार का कष्ट नहीं आता।तमोगुणी, रजोगुणी एवं सत्यगुणी ऐसी तीन प्रेतयोनिया है| पृथ्वी पर वास्तव्य करने वाले पिशाच्च तमोगुणी, अंतरिक्षमें वास्तव्य करनेवाले पिशाच्च रजोगुणी एवं वायु मंडल मे वास्तव्य करने वाले पिशाच्च सत्वगुणी होते है| इन तीनो प्र्कारके प्रेतयोनि की पिशाच्चपीडा परिघरार्थ त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है|हमारे कुल वंश को पीडा देने वाले प्रेतयोनी को प्राप्त जिवात्मायों की इस श्राद्ध कर्म से तृप्ती हो और उनको सदगती प्राप्त हो, ऐसी प्रार्थना के साथ यह कार्य किया जाता है| सोना, चांदी, ताबा, गाय, चावल(जव), कालेतील, उडद,छत्र- खडावा दान देकर यह कार्य पूर्ण होता है| त्रिपिंडी श्राद्ध विधी करने का अधिकार विवाहित पती-पत्नी यह विधी कर सकते है| अविवाहीत व्यक्ती भी यह विधी कर सकते है|त्रिपिंडी श्राद्ध में ब्रह्मा, विष्णू और महेश इनकी प्रतिमाए उनका प्राण प्रतिष्ठा पूर्वक पूजन किया जाता है| हमे सताने वाला, परेशान करने वाला पिशाच्च योनिप्राप्त जो जीवात्मा रहता है उसका नाम एवं गोत्र हमे द्न्यात नही होने से उसके लिए “अनादिष्ट गोत्र” का शब्दप्रयोग किया जाता है| अंतता इसके प्रेतयोनिप्राप्त उस जिवात्मा को संबोधित करते हुए यह श्राद्ध किया जाता है| त्रिपिंडी श्रद्ध जीवनभर दरिद्रता अनेक प्रकारसे परेशानीया, श्राद्ध कर्म, और्ध्ववैदिक क्रिया शास्त्र के विधी के अनुसार न किये जाने के कारण भूत, प्रेत, गंधर्व, राक्षस, शाकिणी – डाकिणी, रेवती, जंबूस आदि द्वारा पिडाए उत्पन्न होती है..


उपाय विधि

इस कर्म का आरम्भ सबसे पहले  शिप्रा पवित्र नदी में स्नान कर के शरीर को पवित्र किया जाता है। जिसे क्षौर कर्म कहा जाता है। यह कर्म किसी पिशाच्चविमोचन तीर्थ "राम घाट" अथवा कुशावर्त तीर्थ पर किया जाता है। इस पूजा में त्रिदेव प्रमुख देवता रहते हैं। इस पूजा में इनकी प्रतिमा स्थपित कर के इनकी पूजा किया जाता है।  ये द्विविस्थ, अंतरिक्षस्थ, भूमिस्थ और सत्व, रज, तमोगुणी तथा बाल तरूण और वृध्द अवस्था के अनादिष्ट प्रेतों को सदगति देते है। इसलिए विधिवत एकोद्दिष्ट विधि से त्रिपिंडी श्राध्द किया जाता है। इस विधी से पूर्व गंगाभेट शरीर शुद्ध और प्रायश्चित्तादि कर्म किया जाता है। यहाँ क्षौर करने की जरूरत नही। किंतु प्रायश्चित्त अंगभूत क्षौर के लिए आता है। त्रिपिडी की विधी सपत्निक नूतन वस्त्र पहनकर किया जाता है। यह विधी जो अविवाहित है अथवा जिसकी पत्नी जीवित नही है उनके द्वारा किया जाता हैं। इस मे देवता ब्रम्हा (रौप्य) रूद्र (ताम्र) धातु की होती है।
ब्राह्मण से इन तीनों देवताओं के लिये मंत्रों का जाप करवाया जाता है। परेशान करने वाला पिशाचयोनि प्राप्त जो जीवात्मा है, उसका नाम एवं गोत्र ज्ञात न होने से उनके लिए अनाधिष्ट गोत्र शब्द‍ का प्रयोग किया जाता है। अंतत: इससे प्रेतयोनि प्राप्त उस जीवात्मा को सम्बोधित करते हुए यह श्राध्द किया जाता है। जौ तिल, चावल के आटे से तीन पिंड तैयार किये जाते हैं। जौ का पिंड समंत्रक एवं सात्विक होता हे, वासना के साथ प्रेतयोनि में गये जीवात्मा को यह पिंड दिया जाता है। चावल के आटे से बना पिंड रजोगुणी प्रेतयोनी में गए प्रेतात्माओ को प्रदान किया जाता है। इन तीनों पिंडो का पूजन करके अर्ध्यं देकर देवाताओं को अर्पण किये जाते है। हमारे कुलवंश को पिडा देने वाली प्रेतयोनि को प्राप्त जीवात्मा ओं को इस श्राध्द कर्म से तृप्ती हो और उनको सदगति प्राप्त हो, ऐसी प्रार्थना के साथ यह कर्म किया जाता है।
इस पूजा को श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन और वैशाख मुख्य मास में किया जाता है। ५, ८, ११, १३, १४, ३० में शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की तिथीयाँ और रविवार दिन बताया गया है। किंतू तीव्र पिडा हो रही हो तो तत्काल त्रिपिंडी श्राध्द करना उचित है।
यह अनिवार्य है की त्रिपिंडी पूजा सिर्फ उज्जैन ( अवंतिका नगरी  ) - "राम घाट" स्थान जैसे धनी जगह पे ही करना चाहिए |

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उज्जैन में विशेष सुविधा

उज्जैन में त्रिपिंडी श्राद्ध के लिए आप हमारे यहाँ उज्जैन ( अवंतिका नगरी  ) - "राम घाट" स्थान पर आ सकते हैं।  हमारे यहाँ पर अनुष्ठान कार्य के लिए पूर्व में ही दिनांक निश्चित की जा सकती है।  आपको किसी भी प्रकार का पूजा पाठ का सामान इत्यादि नहीं लाना होता। तय दिनांक पर आपके लिए विशेष विद्वान को अनुबंधित रखा जाता है तथा सभी आवश्यक सामान एवं सुविधाओं को तैयार रखा जाता है।   यह एक दिन का कार्यक्रम है।  आपके ठहरने की व्यवस्था भी हमारे यहाँ उपलब्ध है।

पूर्व सूचना देने के लिए आप नीचे दिए गए फॉर्म को भर कर "सबमिट" करें।  हम यथा शीघ्र आपको कॉल करके आपके संभावित प्रश्नों का हल करेंगे तथा आपके लिए दिनांक व समय निश्चित करेंगे।

हमारे यहाँ कोरोना काल में बिना उज्जैन आये भी अनुष्ठान की व्यवस्था है। हम लाइव टेलीकास्ट द्वारा आपके लिए अनुष्ठान कार्य करेंगे  जिसे आप अपने स्थान पर बैठे हुए देख पायेंगे तथा अपनी उपस्थिति दे पायेंगे।


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