जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए।प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है।परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो। आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है।
नारायणबलि और नागबलि दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। इसलिए दोनों को काम्य कहा जाता है। नारायणबलि और नागबलि दो अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है और नागबलि का उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। इनमें से कोई भी एक विधि करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता इसलिए दोनों को एक साथ ही संपन्न करना पड़ता है।
यदि आपके घर परिवार में - पूर्वजों का स्वप्न में बार बार आना, घर से दुर्गंध आती है, यह भी नहीं पता चलता कि दुर्गंध कहां से आ रही है, आप कोई त्यौहार मना रहे हैं या कोई उत्सव आपके घर पर हो रहा है ठीक उसी समय पर कुछ ना कुछ ऐसा घटित हो जाता है कि जिससे रंग में भंग डल जाता है, घर के किसी एक सदस्य का कुंवारा रह जाना, मकान या प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में दिक्कत आना, संतान ना होना जैसी समस्याओं का सामना यदि आप करते हैं अतः आप पितृ दोष से प्रभावित हैं और आपको नागवली - नारायणवली पूजा विशेष रूप से करवानी चाहिये।
पूर्वजों का स्वप्न में बार बार आना
शुभ कार्य में अड़चन
घर के किसी एक सदस्य का कुंवारा रह जाना
मकान या प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में दिक्कत आना
संतान ना होना
पलाश विधि, नरायणवली कर्म, पिंड दान, नाग पूजन, हवन, त्रिपिंडी श्राद्ध कर्म, इत्यादि कार्य 3 में पूर्ण किये जाते हैं। नरायणवली प्रमुख ग्रन्थ "निर्णय सिंधु" के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है।धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती, इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये छह नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं। इनके अलावा सभी समय यह कर्म किया जा सकता है।
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